Wednesday, January 18, 2017

रंग गुलाबी है - 1



दूर दूर तक कुछ नही था सिवाय गर्म लू के जिसका बस आज एक ही इरादा था की कोई अगर चपेट में आ गया तो उसका काम तमाम कर डाले मोहन ने अपने माथे पर छलक आये पसीने को पोंन्छा और छाया की तलाश में थोडा और आगे बढ़ गया वैसे तो वो रोज ही बकरिया चराने आया करता था पर आज वो कुछ ज्यादा ही दूर आ गया था प्यास से गला सूख रहा था उसने अपने डब्बे को देखा जो की कब का खाली हो चूका था हताश नजरो से उसने नदी की तरफ देखा जिसमे अब कंकड़ और मिटटी के सिवा कुछ नहीं था कई सालो से बारिश जो नहीं हुई थी उस स्त्र की जो नदी को पुनर्जीवन दे सके


उसने बकरियों को हांका और छाया की तलाश में आगे को बढ़ गया थोड़ी दूर उसे एक देसी कीकर का पेड़ दिखा पेड़ बड़ा तो था पर छाया इतनि नहीं थी पर जेठ की इस गर्म दोपहर में इतनी छाया भी किस्मत वालो को ही मिलती है मोहन ने अपनी कमर टेकी पेड़ से और बैठ गया उसके पशु भी उसके आस पास बैठ गए मोहन ने अपनी बांसुरी निकाली और बजाने लगा जैसे ही उसके होंठो ने बांसुरी को छुआ जैसे वो वीराना महकता चला गया उस बांसुरी की तान पे


अपनी आँखे बंद किये मोहन संगीत में खोया हुआ था अब उसे गर्मी भी नहीं लग रही थी जैसे उसकी सारी थकन को मोह लिया था संगीत ने और तभी उसे ऐसा लगा की एक बेहद ठंडी हवा का झोंका उसे छू कर गया हो उसने झट से अपनी आँखे खोली हाथो पर तो पसीना था फिर कैसे उसको बर्फीला अहसास हुआ था ठण्ड से उसकी रीढ़ की हड्डी तक कांप गयी थी उसने अपना थूक गटका और अस पास देखा पर सिवाय गर्मी की झुलसन के उधर कुछ भी नहीं था कुछ भी नहीं 




 तभी कुछ दूर उसे लगा की कोई खड़ा है मोहन उधर गया तो उसने देखा की एक लड़की उसकी तरफ ही देख रही है मोहन ने जैसे ही उसे देखा एक पल को तो वो उसके रूप में खो सा ही गया इतनी सुंदर लड़की उसने अपने जीवन में आज से पहले कभी नहीं देखि थी चांदी सा रूप उसका एक अलग ही आभा दे रहा था


लड़की- बंसी तुम ही बजा रहे थे


मोहन-हां


वो- अच्छी बजाते हो


मोहन- तुम कौन हो इस बियाबान में क्या कर रही हो


वो- बकरिया चराने आई थी


मोहन- ओह! अच्छा


वो- पानी पियोगे


मोहन-हाँ


उस लड़की ने अपनी मश्क मोहन की तरफ बढाई मोहन ने उसे खोला और एक भीनी भीनी सी खुसबू उसकी सांसो में समाने लगी उसने कुछ घूँट पानी पिया ऐसा लगा की वो पानी ना होकर कोई शरबत हो इतना मीठा पानी मोहन ने कभी नहीं पिया था एक बार जो उसने वो स्वाद चखा खुद को रोक नहीं पाया पूरी मश्क खाली कर दी उसने


मोहन- माफ़ करना मैं सारा पानी पि गया


वो-कोइ बात नहीं प्यास बुझी ना


मोहन- हाँ


वो- थोड़ी आगे एक पानी का धौरा है अपने पशुओ को वहा पानी पिला लेना


ये बोलके वो चलने लगी


मोहन- जी अच्छा


मोहन ने अपने पशुओ को उस लड़की की बताई दिशा में हांका और वहा सच में एक पानी का धौरा था अब मोहन थोडा चकित हुआ इधर से तो वो कई बार गुजरा था पर उसे कभी ये नहीं दिखा था और वो भी जब नदी सुखी पड़ी थी तो ये धौरा कहा से आया फिर उसने अनुमान लगाया की शायद उसकी नजर में कभी आया नहीं होगा पशुओ ने खूब छिक के पानी पिया उसने भी थोडा और पानी पिया अब हुई उसे हैरत पानी बिलकुल वैसा ही जसा उस लड़की ने उसने पिलाया था


पर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया वो वापिस उसी कीकर के पेड़ के नीछे आया और फिर से छेड़ दी बंसी की तान एक बार जो वो बंसी बजाने लगा तो फिर वो ऐसा खोया की उसे समय का कोई ध्यान रहा ही नहीं सांझ ढलने में थोड़ी देर थी की उसकी तन्द्रा एक आवाज से टूटी


“ओ चरवाहे, ये बंसी तू ही बजा रहा था क्या ”

मोहन उठ खड़ा हुआ बोला- जी हुकुम कोई गुस्ताखी हुई क्या


आदमी- चल इधर आ


कपड़ो से वो आदमी शाही सैनिक लग रहा था अब मोहन घबराया पर फिर उस आदमी के पीछे चल पड़ा थोड़ी दूर जाने पर उसने देखा की ये तो शाही काफिला था मोहन ने सभी लोगो को परनाम किया और फिर एक गाड़ी से एक महिला उतरी , जैसे ही मोहन ने उसकी तरफ देखा उसकी आँखे सौन्दर्य की पर्कास्त्ठा से चोंध गयी आज दिन में ये दूसरी बार था जब मोहन ने ऐसी सुन्दरता देखि थी ,ये इस रियासत की सबसे बड़ी महारानी संयुक्ता थी


“महारानी की तरफ नजर करता है गुस्ताख ”एक सैनिक ने कोड़ा फटकारा मोहन को वो दर्द से चीखा


“रुको सैनिक ”


महारानी मोहन के पास आई और बोली- तो तुम वो संगीत बजा रहे थे


मोहन- गुस्ताखी माफ़ रानी साहिबा गलती हो गयी


रानी- गलती कैसी कितनी मिठास है तुम्हारी बंसी की आवाज में हम यहाँ से गुजर रहे थे पर इस मधुर तान ने हम विवश कर दिया रुकने को क्या नाम है तुम्हारा और कहा के रहने वाले हो


“जी, मेरा नाम मोहन है और मैं सपेरो के डेरे में रहता हु, वहा के मुखिया चंदर का बेटा हु ”

रानी- सपेरा होकर बंसी की ऐसी मधुर तान कमाल है


वो- जी पिताजी तो बहुत गुस्सा करते है पर मेरे हाथो को बीन की जगह बंसी ही भाति है


रानी संयुक्ता को मोहन की भोली बाते बहुत अच्छी लगी वो थोडा मोहन के और पास आई और उसके बलिष्ठ शरीर को गहरी नजर से देखते हुए बोली – हम कुछ दिन के लिए जंगल के परली तरफ वाले हिस्से में रुके है आज से ठीक तीन दिन बाद तुम वहा आना हमे तुम्हारी बंसी सुनने की इच्छा है 



अब मोहन की क्या औकात थी जो वो महारानी को मना कर सके संयुक्ता ने मोहन को आदेश दिया और फिर काफिला अपनी मंजिल की और बढ़ने लगा मोहन ने अपने पशुओ को इकठ्ठा किया और डेरे की तरफ चल पड़ा रस्ते भर ये सोचते हुए की अगर उसका संगीत सुनकर रानी खुश हो गयी तो उसका तो जीवन ही संवर जायेगा , वो डेरे पंहुचा , डेरा था बंजारे सपेरो का गाँव था छोटा सा पच्चीस तीस से ज्यादा घर नहीं थे मोहन ने हाथ मुह धोये और तभी उसकी बड़ी बहन उसके गले आ लगी

“भाई आज आने में बड़ी देर हुई तुम्हे ” चकोर भाई के सीने से लगे हुए बोली

चकोर के मोटे मोटे चुचे मोहन के सीने में घुसने लगे वो बहन की छातियो को महसूस करने लगा तभी चकोर उस से दूर हो गयी और बोली- भाई जल्दी आओ तुम्हे कुछ दिखाती हु

मोहन उसके पीछे चल पड़ा अपनी मस्ती में मस्त चकोर अपने भाई के आगे आगे इठलाते हुए चल रही थी और मोहन चाहकर भी अपनी नजर उसके मदमस्त नितम्बो से हटा नहीं पा रहा था इस ग्लानी के साथ की वो उसकी बहन है पर ये योवन की खुमारी उसके सोचने समझने की योग्यता को कम रही थी चकोर एक 21 साल की यौवन से भरी हुई लड़की थी रंग सांवला कटीले नैन नक्श बड़ी बड़ी आँखे बड़ी बड़ी छातिया पतली कमर और थोड़े से चौड़े नितम्ब 


जल्दी ही वो चलते चलते रुक गयी ये एक छोटी सी बागवानी थी जिसे चकोर ने लगाया था

“भाई देखो फूल आने शुरू हो गए है ”

“हाँ, जीजी ”

ऐसा नहीं था की मोहन क अपनी बहन से स्नेह नहीं था पर उसके दिमाग में इस समय बस रानी साहिबा की कही बाते चल रही थी तीन दिन बाद उसे वहा जाना था चकोर पूरी बगीची में घूम घूम कर मोहन को बाते बता रही थी और तभी उसका पाँव गीली मिटटी में फिसला पर मोहन ने उसको अपनी मजबूत बाँहों में थाम लिया उसकी छातिया फिर से मोहन के कठोर सीने से टकराई और मोहन के हाथ चकोर के नितम्बो पर कस गए चकोर के होंठो से एक आह निकली और आज पहली बार उसे अपने भाई की जगह किसी पर पुरुष का स्पर्श महसूस हुआ


शरमाते हुए वो मोहन की बाहों से निकली फिर दोनों भाई बहनों में कोई बात नहीं हुई वैसे भी आज मोहन मोहन नहीं था उसके दिमाग में बस रानी संयुक्ता का सुंदर चेहरा घूम रहा था ऐसी सुंदर स्त्री उसने कभी नहीं देखि थी पर आईएनएस अब बातो में वो उस लड़की को भूल गया था जिसने उसे पानी पिलाया था रात हो गयी थी वो पेड़ न निचे आराम कर रहा था तभी चकोर आई

“भाई मेरे साथ जरा कुवे पर चल मुझे नहाना है ”

“पर जीजी मैं आपके साथ क्या करूँगा ”

“पानी खीच देना और फिर वैसे भी अँधेरा ज्यादा है तू चल ”

मोहन और चकोर कुवे पर पहुचे जो डेरे से थोड़ी दूर था , मोहन ने चकोर के लिए पानी खीचा और पास में ही बैठ गया ठंडी हवा चल रही थी रात को अक्सर मोसम ठंडा हो जाता था चारो तरफ चाँद की रौशनी छिटकी पड़ी थी चकोर ने नहाना शुरू किया उसने अपनी चोली उतारी और घागरे को ऊपर खीच लिया वो अपनी मस्ती में नहा रही थी काफी देर हुई मोहन बोला- और कितनी देर जीजी

“बस हो गया ”

ये सुनते ही मोहन चकोर की तरफ पलता और तभी चकोर के हाथ से घागरे की डोर छुट गयी घागरा उसके पैरो में आ गिरा और साथ ही मोहन ने अपने जीवन में पहली बार किसी को नंगी देख दिया उसकी आँखे जैसे चकोर के बदन पर ही जम गयी उसके उन्नत जिस्म का पूरा अवलोकन कर लिया लाज के मारे चकोर शरमाई और जल्दी से घागरे को ऊपर किया मोहन ने अपना मुह फेर लिया फिर पुरे रस्ते दोनों ने कोई बात नहीं की 



रात को दोनों भाई बहन की आँखों में नींद नहीं थी चकोर उस स्पर्श के बारे में सोच रही थी जब उसके भाई ने उसके नितम्ब को कस के दबाया था और फिर उसको कुवे पर निर्वस्त्र देख लिया था जबकि मोहन खोया था संयुक्ता की सुन्दरता में वो सोचने लगा की रानी साहिबा जैसे कोई गुलाब का टुकड़ा हो कितनी गुलाबी गोरी रंगत थी उनकी और सबसे बड़ी बात उन्होंने उसकी कला को पसंद किया था जिस बंसी के पीछे उसके पिता ने खूब मारा था उसको एक रानी ने उसी कला को पहचाना था उसी कला के पर्दशन हेतु उसे बुलाया था

इधर चकोर अपने भाई के बारे में सोचते हुए धीरे धीरे अपने उभारो से खेलने लगी थी उनमे एक कडापन आने लगा था उसकी टांगो के बीच गीलापन बढ़ने लगा था क्या वो उत्तेजित हो रही थी वो भी अपने ही भाई के बारे में सोच कर चकोर को थोडा गुस्सा भी आने लगा था पर उसके जिस्म में जो अहसास हो रहा था वो उसको अच्छा भी लग रहा था एक अजीब सा सुख मिल रहा था उसे जब वो अपने भाई के बारे में सोच रही थी रात आँखों आँखों में कट गयी दोनों की


इधर सुबह मोहन के पिता किसी काम से डेरे से बाहर चले गए तो मोहन को यहाँ ही रह जाना पड़ा अब उसका मन लगे ना डेरे में क्योंकि यहाँ वो बस खुद को कैदी ही समझता था उसका पिता चाहता था को वो उनकी तरह एक काबिल सपेरा बने पर उसका मन तो बस अपनी बंसी की तान में लगता था अब कैसे वो ये बात घरवालो को समझाए खैर खाना खाने के बाद मोहन ने पानी पिया तो उसे उस लड़की की याद आई नजरे बचा कर वो डेरे से बहार निकला और ठीक उसी जगह पहुच गया वो ही समय था उसने इधर उधर तलाश की पर वो लड़की ना दिखी


दिखती भी कैसे अब चरवाहों का तो यही काम कभी इधर चले गए कभी उधर चले गए पता नहीं क्यों मोहन को लग रहा था की वो उसे जरुर मिलेगी पर हाथ निराशा ही लगी तो थक कर वो उसी कीकर के निचे बैठ गया और बंसी बजाने लगा यही बंसी तो उसका एक मात्र खिलौना थी , करीब घंटा भर हुआ अब मोहन चला वापिस पर तभी उसने सोचा एक नजर फिर से देख लू और तभी उसे वही लड़की उधर ही दिखी

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