Wednesday, January 18, 2017

रंग गुलाबी है - 3

“रानी आप तैयार नहीं हुए हमे वापिस महल लौटना है ”

“हमारा मन नहीं है अभी लौटने का हम कुछ दिन और आखेट करेंगे ”

“मन तो हमारा भी नहीं है पर मंत्री जी का संदेसा आया है तो जाना होगा आपकी सुरक्षा के लिए एक टुकड़ी सैनिको की छोड़ जाते है ”

“उसकी आवश्यकता नहीं महाराज बस कुछ सेविकाए ही बहुत रहेंगी हम कुछ पल अकेले रहना चाहते है ”

“परन्तु महारानी आपकी सुरक्षा ”

“अपने राज्य में हमे किसका डर महाराज और ये मत भूलिए की हमारी रगों में भी रणबांकुरो का लहू दौड़ रहा है ”

“ठीक है आपकी जैसी इच्छा पर ज्यादा दिन ना लगिएगा आपके बिना हमारा मन महल में नहीं लगेगा ”

“आपकी सेवा के लिए दो रनिया और भी है महाराज ”

“पर आपकी बात निराली है खैर, हमे देर हो रही है चलते है ”

महराज के काफिला चल पड़ा महल की और संयुक्ता वही रह गयी अपनी कुछ विस्वस्पात्र बांदियो के साथ महारानी संयुक्ता राजा की सबसे बड़ी रानी थी उम्र करीब 37-38 बेहद ही रूपवान 38 की छातिया 28 कमर और 42 की गांड रूप ऐसा की सोना भी इर्ष्या करे 



एक बेहतरीन माँ और कर्मठ रानी पर बस एक ही कमी थी वो हद से ज्यादा कामुक थी कई बार वो अपनी यौन इच्छाओ पर काबू नहीं कर पाती थी ऐसा नहीं तह की महाराज चंद्रभान में कोई कमी थी वो पूर्ण पुरुष थे पर वो भी संयुक्ता के आगे हार मान लेते थे

आज चौथा दिन था महारानी ने मोहन को मिलने को कहा था बापू था नहीं डेरे में माँ से झूठ बोल कर की वो जड़ी बूटिया लाने जा रहा है वो चल पड़ा रस्ते में वही कीकर का पेड़ आया तो उसे मोहिनी का ख्याल आया उसने एक दो आवाजे भी लगायी पर मोहिनी हो तो आये कुछ देर इंतजार के बाद वो आगे हुआ

थोड़ी प्यास सी लग आई थी उसे ख्याल आया उस पानी की धौरे का वो गया अब वो हुआ हैरान धौरा पूरी तरह से सूखा हुआ था मोहन को विश्वास ना हुआ

“मोहिनी ने तो कहा था की यहाँ हमेशा मीठा पानी रहेगा मैं जब जी चाहू पि लू पर यहाँ तो पानी है ही नहीं शायद मोहिनी ने ऐसे ही कह दिया होगा , पर उस दिन तो पानी था ’

अपने आप से बडबडाता मोहन आगे को बढ़ा और तभी उसे अपने कानो में पानी की आवाज सुनाई दी वो झट से घुमा और क्या देखा धौरा लबालब भरा था पानी से मोहन ने छिक के पानी पिया उसने फिर से मोहिनी को आवाज दी पर वो थी ही नहीं तो कैसे जवाब देती तो वो अपने मंजिल की और बढ़ गया

अब किसकी मजाल थी की महारानी के हुक्म को ना माने पर मोहन अपनी कला की प्रशंशा पाना चाहता था इसी आस में वो आखिर महारानी के शिविर तक जैसे उन्होंने बताया था वो पहुच गया
तभी उस पर महिला सैनिको की नजर पड़ी वो चीलाई- ओये लड़क
के वही ठहर तेरी क्या हिम्मत जो तू महारानी के शिविर के स्थान पर आया

मोहन- मुझे खुद महारानी ने बुलाया है

उनमे से एक हस्ते हुए बोली- तुझे बुलाया है महारानी ने ज्यादा झूठ मत बोल और भाग जा यहाँ से वर्ना सर धड से अलग होते हुए देर न लगेगी

अब मोहन उन्हें समझाए पर वो उसकी एक न सुने आखिर में उन्होंने मोहन को लताड़ कर भगा दिया मोहन की आस टूटी अब क्या करे वो सांझ ढल गयी पर उसने भी ठान लिया की वो महारानी से मिल के ही जायेगा थोडा अँधेरा हुआ भूख भी लगी पर आस थी हताश होकर उसने अपनी बंसी निकाली और छेड़ दी एक दर्द भरी तान मोहन की हताशा दर्द बन कर वातारण में विचरण करने लगी रानी उस समय नहा रही थी सरोवर में जैसे ही उसके कानो में वो आवाज पड़ी रानी बहने लगी उस आवाज में

बुलाया बंदी को और पुछा- ये कौन बंसी बजा रहा है जान तो वो गयी थी की वो ही चरवाहा होगा

बंदी आई- हुजुर, एक लड़का है सुबह से आया है कहता है की आपने बुलाया है पर वो ठीक नहीं लगा तो हमने उसे भगा दिया था पर वो ही थोड़ी दूर बंसी बजा रहा है आपकी शान में गुस्ताखी हुई हम अभी उसे कैद में लेते है

संयुक्ता- गुस्ताख, तुम हमारे मेहमान को कैद में लोगी इस से पहले की हमारे क्रोध की जावला में तुम जल जाओ उस चरवाहे को बा अदब हमारे पास लाया जाये और साथ ही उसके भोजन की शाही व्यवस्था की जाए उसे इज्जत केसाथ लाओ अभी रानी दहाड़ी

जैसे ही मोहन को पता चला की रानी ने उसको बुलाया वो खुश होगा राजी राजी आया उसी तालाब के पास जिसमे रानी अठखेलिया कर रही थी मोहन को देख कर रानी मुस्कुराई और बोली- सबको आदेश है की जब तक हम किसी को ना बुलाये कोई नहीं आये यहाँ पर सबसे पहले इसके लिए कुछ खाने का प्रबंध करो

कुछ ही देर में मोहन के लिए तरह तरह के पकवान आ गए जिनका ना नाम सुना उसने ना कभी खाया संयुक्ता ने उसको इशारा किया मोहन ने खाना शुरू किया जल्दी ही उसका पेट भर गया रानी ने पुछा कुछ और उसने मना किया वो मुस्कुराई
संयुक्ता अभी भी पानी में ही थी गर्दन तक पानी में डूबी बोली- क्या नाम है तुम्हारा

मोहन-जी मोहन

“तो मोहन सुनाओ कोई तान जिस से मैं बहक जाऊ मेरे मन को कुछ देर के लिए ही सही एक सुकून सा मिले उस दिन जो तुम बजा रहे थे वो ही बजाओ ऐसे लगता है की जैसे तुम्हारी तान सीधे मेरे दिल में उतरती है ”

मोहन वही तालाब किनारे बैठ गया और उसने छेड़ दी ऐसी मधुर तान की जैसे कान्हा जी के बाद अगर कोई बंसी बजता था तो बस मोहन और कोई नहीं इधर जैसे जैसे मोहन का संगीत अपने श्रेष्ठ की और जा रहा था संयुक्ता की प्यास जागने लगी थी पानी की शीतलता में भी उसका बदन किसी बुखार के रोगी की तरह तपने लगा था जिस्म की प्यास फिर से उसके बदन को झुलसाने लगी थी ऐसा नहीं था की वो कोई चरित्रहीन औरत थी

पर जब से उसने मोहन को देखा था वो अपने आप में नहीं थी
पता नहीं मोहन म ऐसी कौन सी कशिश थी जिसने महारानी संयुक्ता को आकर्षित कर लिया था , रानी को भी अपनी चूत की प्यास में कई दिनों से तड़प रही थी उसने धीरे से अपने निचले होंठ को दांत से काटा और मोहन को आवाज लगाई 



“पानी में आ जाओ ”

“जी मैं ” वो थोडा सा सकुचाया

“सुना नहीं हमने क्या कहा ”

अब किसकी मजाल जो राज्य की महारानी को ना करे मोहन ने अपने कपडे उतारे और पानी में आने लगा और जैसे ही संयुक्ता की नजर मोहन के लंड पर पड़ी उसकी आँखों में एक चमक आ गयी
पानी के अन्दर ही रानी ने अपने चोची को भीचा और एक आह भरी अँधेरा होने लगा था ये कैसी कसक थी कैसी प्यास थी तो रानी ने इस काम के लिए मोहन को यहाँ बुलाया था ये जिस्म की प्यास एक महारानी का दिल एक बंजारे पर आ गया था वैसे तो रानी- महारानियो के इस पारकर के शौक होते थे पर क्या एक रानी इस स्तर पर आ गयी थी की उसने एक बंजारे को चुना था चलता हुआ मोहन रानी के बिलकुल सामने ही खडा था इस समय संयुक्ता मोहन की आँखों में देखते हुए मुस्कुराई


और अगले ही पल उसने मोहन के लंड को पानी में पकड लिया मोहन थोडा सा घबराया पर रानी ने उसको आँखे दिखाई अब रानी का क्या पता कब नाराज हो जाये सर धड से अलग करवा दे मोहन चुप हो गया पानी में भी संयुक्ता ने लंड की गर्माहट को मेह्सूस कर लिया था वो बोली- कभी किसी औरत के करीब गए हो कभी किया है



मोहन- नहीं मालकिन



रानी- तो कोरे हो चलो आज तुम्हे स्वर्ग की सैर का अनुभव करवा ही देती हु देखो मोहन मैं जैसा करती हु करने देना वर्ना तुम जानते हो



मोहन से हाँ में सर हिलाया , संयुक्ता ने धीरे धीरे उसके लंड को सहलाना शुरू किया मोहन के लंड को पहली बार किसी औरत ने हाथ लगाया था तो जल्दी ही वो उत्त्जेजित होने लगा जैसे जैसे उसके लंड में तनाव आ रहा था रानी के होंठो पर कुतिली मुस्कान आ रही थी वो जन गयी थी की लंड में बहुत दम है आज वो जी भर के तरपत होंगी मोहन के लंड की मोटाई उसकी कलाई के करीब ही थी रानी अब तेज तेज हाथ चलाने लगी थी उसके लंड पर



“मोहन हमारी छातियो को चुसो ”

वो दोनों अब थोडा सा बाहर को आये पानी अब उसकी कमर था मोहन ने जैसे ही अपने हाथ रानी की चूचियो पर रखे वो तड़प गयी



“आह,थोडा सा जोर से दबाओ ”


मोहन ने थोडा सा जोर से दबाया तो रानी को हल्का सा दर्द हुआ पर इस दर्द का भी एक अपना मजा था एक मिठास थी मोहन को भी उत्तेजना चढ़ रही थी वो थोडा जोश में आके रानी के बोबो से खेलने लगा और फिर संयुक्ता के दोनों चूचियो को बारी बारी से चूस रहा था गोरी छातिया लाल सुर्ख होने लगी थी उनके निप्पलस करीब इंच भर बाहर आ गए थे रानी की चूत से रिसकर कामरस तालाब के पानी में मिल रहा था करीब पंद्रह मिनट तक रानी ने उस से अपने बोबे चुस्वाये



अब उसने लंड को आजाद किया और मोहन की करीब आई इतनी करीब की उसकी छातिया मोहन के सीने से दबने लगी मोहन का लंड उसकी चूत पर रगड खाने लगा दोनों की आँखे मिली और संयुक्ता ने अपने सुर्ख गुलाबी होंठो को मोहन के होंठो से लगा लिया और चूमने लगी मोहन को ऐसे लगा की जैसे किसने ने गुलाब की पंखुडियो को सहद में मिला कर उसके मुह में डाल दिया संयुक्ता मोहन के होंठो को तब तक चुस्ती रहीजब तक मोहन के निचले होंठ से खून ना निकल आया उसकी चूत बहुत ज्यादा पानी छोड़ रही थी रानी का यौवन आज खिल रहा था उस रात की तरह




चुम्बन के टूटते ही उसने मोहन को शिविर में चलने को कहा दोनों नंगे ही वहा आये रानी के क़यामत हुस्न को देख कर मोहन का लंड ऐंठने लगा जैसे स्वर्ग से कोई अप्सरा ही उतर आई हो धरती पर गोरा बदन भरी छातिया मांस से भरी चिकनी जांघे और बेहद उन्नत गांड उसकी जैसे ही मोहन शिविर में आय उसे अलग की वो गलती से किसी महल में ही आ गया है आलीशान पलंग शानदार बिस्तर संयुक्ता ने मोहन को पलंग पर लिटाया और फिर खुद भी चढ़ गयी



मोहन का काला लंड आसमान की और मुह किये तने था रानी ने उसको अपनी मुट्ठी में लिया और सुपाडे की खाल को निचे किया गुलाबी सुपाडा जो की किसी छोटे आलू की तरह फूला हुआ था बड़ा सुंदर लग रहा था संयुक्ता ने अपने होंठो पर जीभ फेरी और फिर खुद को मोहन के लंड पर झुका लिया जैसे ही लिजलिजी जीभ ने मोहन के सुपाडे को छुआ मोहन की आँखे मस्ती के मारे बंद हो गयी रानी ने एक नजर मोहन पर डाली और फिर मोहन के लंड को चूसने लगी 





रानी को पूरा मुह फाड़ना पड़ा तब वो उस सुपाडे को चूस पायी अपने मुह में ले पायी साथ ही वो मोहन के टट्टे भी सहला रही थी मोहन मस्ती के मारे जल्दी ही अपनी टाँगे पटकने लगा मोहन का आधे से ज्यादा लंड जैसे तैसे करने उसने अपने मुह में उतार दिया था बाकि को वो हाथ से सहलाती रही उसकी छातिया मोहन की टांगो पर रगड खा रही थी संयुक्ता पूरी तरह से मोहन के लंड पर टूट पड़ी थी कभी सुपाडे को चुस्ती तो कभी वो उसके टट्टे



साथ ही उसे हैरानी भी हो रही थी की इतनी देर से ये झडा नहीं है रानी की चूत हद से ज्यादा गीली हो गयी थी आज से पहले इतना पानी उसने कभी नहीं छोड़ा था थोड़ी देर और बीती और फिर मोहन का लंड ऐंठने लगा उसकी नसे फूलने लगी रानी समझ गयी थी की ये झड़ने वाला है उसने फिर से सुपाडे को अपने मुह में भर लिया और मोहन के लंड से गाढ़ा सफ़ेद रस रानी के मुह में गिरने लगा एक के बाद क पिचकारिया रानी के गले से होते हुए उसके पेट में जाने लगी



जब उसने वीर्य की छोटी से छोटी बूँद भी गटक ली तब लंड को बाहर निकाला पर उसकी आँखे चमक गयी जब उसें देखा लंड अभी की किसी लकड़ी के डंडे की तरह खड़ा है उसकी चूत तो वैसे ही गीली हो रही थी अपने होंठो पर लगे वीर्य को साफ किया संयुक्ता ने और फिर अपनी टाँगे फैला आकर अपनी चूत मोहन को दिखाई बिना बालो की थोड़ी फूली हुई सी चूत जो एक दम गुलाबी थी बिलकुल किसी ताजा गुलाब की तरह अब कौन कह दे की इस औरत के दो बच्चे है



“मोहन प्यार करो इसे जैसे मैंने तुम्हारे अंग को चूसा है चाटा है ऐसे ही तुम इसे प्यार करो”


मोहन ने अपना सर उसकी टांगो के बीच घुसा दिया उत्त्जेना वश चूत के दोनों होठ फद्फदाये एक नमकीन सी महक मोहन की सांसो में घुलने लगी उसने जैसे ही अपनी जीभ से रानी की चूत को टच किया नमक सा लगा उसको और संयुक्ता के बदन में ऐंठन हुई वो मचली उसने अपनी गांड थोड़ी सी ऊपर उठा दी मोहन की जीभ उसकी चूत पर चलने लगी संयुक्ता की सांसे उफनने लगी

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